Living Wage: देश में श्रमिकों की स्थिति सुधारने के लिए लाए गए मिनिमम वेज कानून ने बहुत हद तक लोगों को मिलने वाली न्यूनतम वेतन का स्तर उठाने में मदद की है। हालांकि, कई कंपनियों और औद्योगिक प्रतिष्ठानों ने इस नियम से बचने के अलग-अलग उपाय निकाल लिए हैं।
इसलिए अब इस कानून को और बेहतर बनाने की जरूरत महसूस की जा रही है ताकि इसके नियम और कायदे पहले से ज्यादा स्पष्ट एवं मजबूत होकर कर्मचारियों की मदद कर सकें। इसके लिए सरकार जल्द ही मिनिमम वेज (Minimum Wage) की जगह लिविंग वेज (Living Wage) सिस्टम को लाने जा रही है। आइए इसके बारे में और समझ लेते हैं।
Living Wage: न्यूनतम वेतन भूल जाइए… सरकार कर रही नई व्यवस्था लागू करने की तैयारी
लिविंग वेज क्या है?
इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक, लिविंग वेज किसी काम के बदले किया जाना वाला वह पेमेंट है, जिसमें वर्कर्स और उनके परिवार की अच्छी लाइफ-स्टाइल का ध्यान रखा जाता है। इसके निर्धारण में देश की स्थितियों का ध्यान रखा जाता है। इसका कैलकुलेशन काम के सामान्य घंटों के आधार पर होता है। इसमें फूड, क्लॉदिंग और शेल्टर जैसी जरूरतों का ध्यान रखा जाता है। साथ ही चाइल्ड एजुकेशन औक हेल्थ प्रोटेक्शन जैसे उपाय शामिल होते हैं।
अभी क्या हैं नियम
ईटी की रिपोर्ट के अनुसार एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के मुताबिक हम एक साल में न्यूनतम मजदूरी से आगे बढ़ सकते हैं। भारत में 50 करोड़ से अधिक श्रमिक हैं और उनमें से 90% असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं, जहां कई लोग दैनिक न्यूनतम वेतन (दिहाड़ी) 176 रु या अधिक पर काम करते हैं।
दैनिक न्यूनतम वेतन उस राज्य पर निर्भर करता है जहां वे काम करते हैं। हालाँकि यह राष्ट्रीय वेतन स्तर (जिसे 2017 से संशोधित नहीं किया गया है) राज्यों पर बाध्यकारी नहीं है और इसलिए कुछ राज्य इससे भी कम भुगतान करते हैं।
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क्या है लिविंग वेज, किस तरह मिलेगा लाभ
* ईटी की रिपोर्ट के मुताबिक, लिविंग वेज वह न्यूनतम आय होती है जिससे कोई मजदूर अपनी बुनियादी जरूरतों जैसे आवास, भोजन, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और कपड़ें को पूरा करता है। अधिकारियों की मानें तो सरकार ने क्षमता निर्माण, डेटा संग्रह और जीवनयापन मजदूरी के सकारात्मक आर्थिक प्रभावों को प्रदर्शित करने में सहायता के लिए ILO से संपर्क किया है और मदद मांगी है।
* केन्द्र सरकार 2030 तक सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (SDG) को हासिल करने की दिशा में काम कर रही है। इससे गरीबी से बाहर निकालने के भारत के प्रयासों को गति मिल सकती है।
* श्रम सचिव सुमिता डावरा ने विकासशील देशों के लिए जीवनयापन मजदूरी को परिभाषित करने में स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर को महत्वपूर्ण कारकों के रूप में मानने के महत्व पर जोर दिया।
* व्यापक जीवनयापन वेतन परिभाषा के लिए जीवन स्तर के मूल्यांकन में आर्थिक, सामाजिक और जनसांख्यिकीय तत्वों को शामिल करने पर जोर दिया।
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