Sandhya Aarti ke Niyam : (नई दिल्ली से पत्रकार ऊषा माहना की कलम से) न्यू दिल्ली से प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुविद आचार्य आदित्य झा ने बताया कि संध्या आरती का वेदों में काफी महत्व बताया गया है लेकिन आरती लोग सही तरीके से नहीं करते है जिससे उनको विशेष फल नहीं मिल पाता है। संध्या आरती करते समय सनातन धर्म के लोगों कुछ सावधानी बरतने की जरूरत है जिससे कि उनके घर में सुख समृद्धि का वास हो सके।
हिंदू धर्म में पूजा-पाठ और आरती करने के लिए कई नियमों के बारे में बताया गया है। यदि इन नियमों का व्यक्ति सही तरीके से पालन करें, तो जातक के जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य का आगमन होता है। आरती के बिना कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है।
आरती की लौ उत्तर दिशा में दिखाना
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक उत्तर दिशा में भगवान शिव और कुबेर देव का वास माना जाता है। धार्मिक शास्त्रों में कुबेर देव को धन-संपत्ति का देवता माना गया है। वहीं यह दिशा भोलेनाथ को भी अतिप्रिय है। शाम को इस दिशा में आरती की लौ दिखाने से व्यक्ति को शुभ परिणाम मिलते हैं और सुख-समृद्धि का आगमन होता है।
Sandhya Aarti ke Niyam : आरती की लौ पश्चिम दिशा में दिखाना
वहीं शनिदेव की दिशा पश्चिम दिशा मानी जाती है। इस दिशा में संध्या के समय आरती दिखाने से जातक पर हमेशा शनिदेव की कृपा दृष्टि बनी रहती हैं। साथ ही व्यक्ति को शनिदोष से भी छुटकारा मिलता है।
Sandhya Aarti ke Niyam : आरती की लौ पूर्व दिशा में दिखाना
पूर्व दिशा भगवान श्रीहरि विष्णु की दिशा मानी जाती है। इस दिशा में संध्या को आरती की लौ दिखाना चाहिए। इससे व्यक्ति पर श्रीहरि की कृपा दृष्टि बनी रहती है और व्यक्ति के सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है।
Sandhya Aarti ke Niyam : आरती की लौ दक्षिण दिशा में दिखाना
ज्योतिष में दक्षिण दिशा पितरों और यम देव की मानी जाती है। इस दिशा में आरती दिखाने से पितृ प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति को अकाल मृत्यु के भय से छुटकारा मिलता है। इसलिए दक्षिण दिशा में संध्य़ा आरती दिखाएं।
आरती करने के नियम
आरती करने के दौरान व्यक्ति को एक स्थान पर खड़े होकर आरती करनी चाहिए। साथ ही आरती करते समय थोड़ा सा झुकना चाहिए। वहीं भगवान के चऱणों की तरफ चार बार, नाभि की ओर दो बार, मुख की तरफ एक बार और शरीर के सभी अंगों की तरफ सात बार करना चाहिए।