One Nation One Election: क्या है ‘वन नेशन वन इलेक्शन’? क्यों प्रधानमंत्री मोदी कर रहे इसे प्रमोट, क्या हो पाएंगे विधानसभा चुनाव
One Nation One Election: What is 'One Nation One Election'? Why is Prime Minister Modi promoting it, will assembly elections be held?
One Nation One Election: वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर एक बार फिर से पूरे देश में चर्चा शुरू हो गई है। क्या आने वाले समय में होने वाले विधानसभा चुनाव हो पाएंगे। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी इसे क्यों प्रमोट कर रहे है। इसके कारण देश में क्या फायदा और नुकसान होगा। ये सारे सवाल देश के हर नागरिक के मन में उठ रहे है। हम इन सारे सवालों का जवाब आपके लिए लेकर आए है। यदि आपके मन में भी ये सारे सवाल हैं तो आप पोस्ट को आखिर तक पढ़ें, आपके सारे डाउट क्लियर हो जाएंगे।
क्या पहले भी हुआ ऐसा चुनाव
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा है कि अपने संविधान निर्माताओं ने पूर्व से ही इसका प्रावधान रखा है। उन्होंने कहा कि 1962 और 1967 में वन नेशन वन इलेक्शन की तर्ज पर विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ हुए हैं। 1967 के बाद से यह बाहर होता चला गया है और पूरे साल चुनाव होते रहे। चुनाव आयोग ने इसमें सुधार लाने के लिए 1982-83 में सुझाव भारत सरकार को दिया था। कहा था कि आप अगर इसमें बदलाव लाते हैं तो हम वन नेशन वन इलेक्शन के लिए तैयार हैं। इस पर कोई अमल नहीं हुआ।
कैसे हो सकता है वन नेशन वन इलेक्शन (One Nation One Election)
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा कि 2015 में सरकार ने इलेक्शन कमीशन से पूछा कि क्या फिर से वन नेशन वन इलेक्शन करना संभव है। चुनाव आयोग की तरफ से भारत सरकार को कहा गया कि बिल्कुल संभव है और हम करा सकते हैं। अगर संविधान में संशोधन हो जाए, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1981 में संशोधन हो जाए। साथ ही 1951 में संशोधन हो जाए। साथ ही ईवीएम और वीवीपैट खरीदने के लिए हमारे पास पैसा हो जाए। साथ ही पर्याप्त संख्या में पैरा मिलट्री फोर्स मिल जाएं तो चुनाव आयोग इसे कराने में सक्षम है।
एक देश-एक चुनाव के क्या हैं लाभ?
एक देश-एक चुनाव की वकालत खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर चुके हैं। इस बिल के समर्थन के पीछे सबसे बड़ा तर्क यही दिया जा रहा है कि इससे चुनाव में खर्च होने वाले करोड़ों रुपये बचाए जा सकते हैं। पैसों की बर्बादी से बचना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई मौकों पर वन नेशन-वन इलेक्शन की वकालत कर चुके हैं। इसके पक्ष में कहा जाता है कि एक देश-एक चुनाव बिल लागू होने से देश में हर साल होने वाले चुनावों पर खर्च होने वाली भारी धनराशि बच जाएगी। बता दें कि 1951-1952 लोकसभा चुनाव में 11 करोड़ रुपये खर्च हुए थे जबकि 2019 लोकसभा चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपये की भारी भरकम धनराशि खर्च हुई थी। पीएम मोदी कह चुके हैं कि इससे देश के संसाधन बचेंगे और विकास की गति धीमी नहीं पड़ेगी।
एक देश एक चुनाव पर सरकार का क्या कहना है? (One Nation One Election)
इस मामले पर शुक्रवार को पहली बार सरकार ने कोई प्रतिक्रिया दी। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि फिलहाल एक कमेटी का गठन किया गया है। कमेटी की रिपोर्ट आएगी जिस पर चर्चा होगी। मंत्री ने कहा कि संसद परिपक्व है और चर्चा होगी, घबराने की जरूरत नहीं है। भारत को लोकतंत्र की जननी कहा जाता है, विकास हुआ है…मैं संसद के विशेष सत्र के एजेंडे पर चर्चा करूंगा।
वहीं अधिकारियों ने पीटीआई एजेंसी को बताया कि एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में कम से कम पांच संशोधन करने होंगे। इनमें संसद के सदनों की अवधि से संबंधित अनुच्छेद 83, राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा को भंग करने से संबंधित अनुच्छेद 85, राज्य विधानमंडलों की अवधि से संबंधित अनुच्छेद 172, राज्य विधानमंडलों के विघटन से संबंधित अनुच्छेद 174 और राज्यों में राष्ट्रपति शासन को लागू करने से संबंधित अनुच्छेद 356 शामिल हैं। इसके साथ ही संविधान की संघीय विशेषता को ध्यान में सभी दलों की सहमति जरूरी होगी। वहीं यह भी अनिवार्य है कि सभी राज्य सरकारों की सहमति प्राप्त की जाए।
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पीएम मोदी ने कही थी वन नेशन वन इलेक्शन की बात
2016 में प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में वन नेशन वन इलेक्शन की बात कही भी थी, 2017 में नीति आयोग ने अपनी रिकमेंडेशन दी कि एक ही चुनाव होना चाहिए, 2018 में लॉ कमीशन ने सुझाव दिया कि किस तरीके से लोकसभा-विधानसभा का एक ही चुनाव हो सकता है, 2019 में फिर से रिकमेंडेशन दी गई और अब पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में वन नेशन वन इलेक्शन के लिए कमेटी गठित कर दी गई है।