Lathee Chaimpiyan: पारंपरिक लाठी में साउथ एशियन चैंपियन शिप के आयोजन में भाग लेने बैतूल से 12 खिलाड़ियों समेत 14 सदस्यीय दल गुरुवार सुबह रवाना हो जाएगा। आज खिलाड़ी बच्चो ने यहां इस अंतर्राष्ट्रीय चैंपियनशिप में भाग लेने के लिए जमकर प्रैक्टिस की। उन्हें गोल्ड मैडल हासिल करने की पूरी उम्मीद है। इस चैंपियनशिप में भारत, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, श्रीलंका और म्यांमार के खिलाड़ी भाग लेंगे।
आज बैतूल के खिलाड़ी बच्चो को भूटान के लिए रवानगी से पहले लाठी संघ के पदाधिकारियों ने उनका हौसला बढ़ाया। उन्होंने बच्चो का प्रदर्शन देखा और उन्हें शुभकामनाएं दी। यह खिलाड़ी आर्थिक तंगी के चलते इस चैंपियनशिप में भाग नही ले पा रहे थे। दैनिक भास्कर ने पिछले 9 जुलाई को इसका मुद्दा उठाया था। जिसके बाद बैतूल विधायक हेमंत खंडेलवाल ने खिलाड़ियों के आने जाने समेत सारी व्यवस्थाओं के लिए राशि भेंट की थी।
Lathee Chaimpiyan: भूटान में बैतूल से 12 खिलाड़ी खेलेंगे साउथ एशियन टूर्नामेंट
इन खिलाड़ियों का भूटान के थिंपू में आयोजित दक्षिण एशिया लाठी स्पर्धा में भाग लेने के लिए सलेक्शन हुआ है। हालांकि, आने-जाने के खर्चे फेडरेशन की फीस जुटाना उनके बस की बात नहीं थी। इसके लिए फेडरेशन 15 हजार रुपए शुल्क ले रहा है। जबकि आने जाने में यात्रा किराया, खाना-पीना 5 से 6 हजार तो खर्च होगा ही। वे इतनी बड़ी रकम कैसे मैनेज करेंगे। यह चिंता खिलाड़ी और उनके परिवारों को सता रही थी।
इन खिलाड़ियों ने हरिद्वार में आयोजित नेशनल स्पर्धा में शिरकत की थी। वंशिका बुंदेले, गुंजन, न श्रष्टि गावंडे, कृतिका राठौर, वंशिका माहेश्वरी, रिसिका दुबे, चेतना में माथनकर, रुचि भोंडे, पीयूष उपाध्याय, पार्थ सोनी, आर्यन डोंगरे, यश के सावनेर, हर्षित डेहरिया, निधि यादव, उन्नति डिगरसे सभी लाठी स्पोर्ट्स के मंझे हुए खिलाड़ी है। इन सभी खिलाड़ियों को 4 से 6 अगस्त को भूटान देश की राजधानी थिम्पू में अपने खेल का जौहर दिखाना है।
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जानिए आखिर क्या है लाठी स्पर्धा
लाठी काठी महाराष्ट्र, भारत में प्रचलित एक मार्शल आर्ट का नाम है। यह नाम स्थानीय मराठी भाषा में है। इसकी शुरुआत छत्रपति शिवाजी महाराज के समय में मुख्य रूप से महिलाओं के लिए आत्मरक्षा के एक कार्य के रूप में हुई थी। आत्मरक्षा के लिए तलवार की तरह लकड़ी या धातु के डंडे का इस्तेमाल किया जाता है। हालाकि इसे बंगाली मार्शल आर्ट भी कहा जाता है।
विनोद बुंदेले इसके फेडरेशन में शामिल है। वे राष्ट्रीय कोच भी है। वे बताते है लाठी इंडिया पारंपरिक गेम है। हम इसे अक्सर अखाड़ों है में ही देखा करते थे। लेकिन दिल्ली के सतीश ,चौधरी राजेश चौधरी ने इसके लिए काफी मेहनत की उन्होंने इसे खेल का रूप दिया। देशभर के अखाड़ों के उस्तादो से मिलकर उनके कैंप लगाकर इस खेल के नियम बनाए कोच और रैफरी तैयार किए अर्बफिर लाठी फेडरेशन बनाया।
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उनकी मेहनत का असर हुआ की साल 2020 में खेल विभाग ने इसे खेल के रूप में।मान्यता दे दी। तीन साल से यह राष्ट्रीय खेलों का हिस्सा बन गया है। 2023 में एमपी सरकार ने भी इसे स्कूली खेलो में शामिल कर लिया है।जिसका पहला राज्य स्तरीय आयोजन उज्जैन में हो चुका है।
आज एमपी में इसके एक हजार से ज्यादा खिलाड़ी है। देश के कई राज्य जिनमें महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश बिहार आसाम, पश्चिम बंगाल, पांडिचेरि, राजस्थान में इसके खिलाड़ियों की तादाद हजारों में है। पिछले साल जून में काठमांडू में इसका पहला साउथ एशियन टूर्नामेंट हो चुका है। अब 4 से 6 अगस्त तक थिंपू भूटान में दूसरा आयोजन होना है। पांच साल तक यह लगातार साउथ एशियन में आने पर इसे ओलंपिक गेम्स में शामिल कर लिया जाएगा। नेपाल बंगला श्रीलंका पाकिस्तान भूटान में भी खिलाड़ी इस गेम को खेलते है।